
खबर मध्यप्रदेश के मुरैना से है जहाँ प्रेमी जोड़े ने प्रेम विवाह के पश्चात् ग्वालियर हाई कोर्ट में सुरक्षा की याचिका डाली है। प्रेमी युगल ने आर्यसमाज मंदिर में विवाह किया था जहाँ उन्हें शादी का सर्टिफिकेट भी दिया गया थ। इसी सर्टिफिकेट के आधार पर उन्होंने कोर्ट में याचिका दायर की|।
युवक-युवती के अनुसार उन्होंने सबकी मर्जी के खिलाफ जाकर प्रेम विवाह किया इसलिए उनके घरवाले उनके ऊपर गलत इलज़ाम लगा रहे हैं तथा उन्हें खतरा है। उन्होंने शादी का सर्टिफिकेट दिखाते हुए कहा की वे अब विवाहित हैं तथा उनके ऊपर जाहिर खतरे को देखते हुए अदालत सुरक्षा प्रदान करें।
वहीँ अदालत ने याचिका से सम्बंधित टिपण्णी करते हुए कहा की शादी तभी मान्य है जब सारे रीती रिवाजों के अनुसार अग्नि को साक्षी मानकर फेरे लिए जाएँ।
लेकिन आजकल लोग प्रेम विवाह को वैद्यानिक रूप देने के लिए ऐसी याचिकाएं दायर कर रहे हैं। कोर्ट ने यह भी माना उन्हें धमकी देने या उनके ऊपर किसी खतरे का कोई साक्ष्य नही है। फलस्वरूप, कोर्ट ने इस याचिका को सुनवाई योग्य न मानते हुए ख़ारिज कर दिया


मुंबई: कर्ज में डूबे मुकेश अम्बानी के छोटे भाई अनिल अम्बानी ने तीन चीनी बैंकों से लोन मामले में अपनी संपत्ति को लेकर बड़ा खुलासा करते हुए बताया कि उनके पास कोई महत्वपूर्ण संपत्ति नहीं है। वहीं अब उनका खर्च उनकी पत्नी और परिवारवाले संभालते हैं। अनिल का यह भी कहना है कि उनकी आय का अब कोई दूसरा जरिया नहीं है और अब वे एक साधारण व्यक्ति हैं।तीन चीनी बैंकों से लिया था $700 मिलियन का क़र्ज़दरअसल अनिल अम्बानी और उनकी कंपनी रिलायंस कॉम ने फरवरी 2012 में तीन चीनी बैंकों से $700 मिलियन से अधिक का ऋण लिया था , जिसकी पर्सनल गारंटी अनिल अंबानी ने ली थी। जहाँ अब उनकी यह कंपनी दिवालिया हो चुकी है तो बैंकों ने ब्याज के साथ रकम वसूलने के लिए उन पर मुकदमा किया है। इन लोन देने वाले बैंकों में इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना लिमिटेड (मुंबई ब्रांच), चाइना डेवलपमेंट बैंक और एक्जिम बैंक ऑफ चाइना हैं।लंदन हाई कोर्ट ने सुनाया था फैसलाइस केस में बीते 22 मई 2020 को लंदन हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि अनिल अंबानी 12 जून तक तीन चीनी बैंकों को $7.
17 मिलियन का भुगतान करेंगे, लेकिन जब तय समय पर यह भुगतान ना हुआ बैंकों ने संपत्ति घोषित करने की मांग की थी। इसपर अदालत ने अनिल अंबानी को 29 जून को दुनिया में फैली अपनी संपत्तियों को घोषित करने का आदेश भी पारित किया था।कानूनी विकल्पों का होगा इस्तेमालयही नहीं उनसे उनके ऐफिडेविट में यह भी बताने को कहा गया कि उन संपत्तियों में उनकी पूरी हिस्सेदारी भी है या वो इनमे भी किसी के साथ संयुक्त हकदार हैं। इसके साथ ही तीन चीनी बैंकों ने यह साफ़ कहा है कि वे जरुरत पड़ी तो अनिल अम्बानी के खिलाफ अपने बाकी सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल करेंगे।


Kiradu Temple in Rajasthan: हमारे सामने आने वाले कई तथ्य ऐसे होते है जो हमें हैरान कर देते है जिन पर हम चाहकर भी विश्वास नहीं कर पाते है। आपने कभी ऐसी जगह के बारे में सुना है जहाँ रात को रुकने पर आप इंसान से पत्थर बन सकते है। हो गए ना हैरान?
अगर नहीं, तो हम आपको आज ऐसी जगह के बारे में बताएंगे, जहाँ अगर आप रात को ठहरे तो इंसान से पत्थर में बदल जाएगें। चलिए जानते है इस रहस्यमय जगह के बारे में।राजस्थान का ये गांव (Kiradu Temple in Rajasthan)राजस्थान की ताप्ती रेतीली धरती अपने अंदर कई राज समेटे बैठी हैं। यह राज ऐसे होते हैं जिन्हें जानकर बड़े-बड़े हिम्मतवालों के पसीने छूट जाते हैं। कुलधारा गांव और भानगढ़ का किला राजस्थान में स्थित ऐसे ही रहस्यमय स्थानों में से एक है जो पूरी दुनिया में भूतिया स्थान के रुप में में जाने जाते है।बारमेर जिले में स्थित किराडू का मंदिर (Kiradu Temple) रहस्य के मामले में कुलधारा और भानगढ़ जितना ही खौफनाक है। यह मंदिर राजस्थान में खजुराहो मंदिर के नाम से मशहूर है जो प्रेमियों के लिए विशेष रूप से आकर्षण का केंद्र हैं। लेकिन इस जगह की खौफनाक हकीकत को जानने के बाद कोई भी शख्स सूरज ढलने के बाद यहां ठहरने की हिम्मत नहीं करता है।पत्थर का बन जाता है इंसान (Mysterious Temples in India)किराडू के मंदिर के बारे में ऐसी मान्यता है कि यहां शाम होने के बाद जो भी रह जाता है वो या तो पत्थर का बन जाता है या फिर मौत की गहरी नींद में सो जाता है। इस स्थान के बारे में यह मान्यता सदियों से चली आ रही है। पत्थर बन जाने के खौफ के कारण यह इलाका शाम होते ही पूरा वीरान हो जाता है।इस मान्यता के पीछे एक ऐसी अजीब कहानी है जिसकी गवाह एक औरत की पत्थर की मूर्ति है, जो किराडू से कुछ दूरी पर सिहणी गांव में स्थित है। किराडू के लोग बन गए पत्थर (Kiradu Temple History in Hindi)यह बात वर्षों पहले की है जब किराडू में एक तपस्वी पधारे थे। इनके साथ शिष्यों की एक टोली थी। एक दिन तपस्वी अपने शिष्यों को गांव में ही छोड़कर भ्रमण के लिए चले गए। इस दौरान अचानक शिष्यों का स्वास्थ्य काफी ख़राब हो गया।उस समय गांव के लोगों ने शिष्यों की कोई मदद नहीं की। जब तपस्वी किराडू लौटे कर वापस आए और अपने शिष्यों की ये दशा देखी तो क्रोधित होकर गांव वालों को श्राप दिया कि जिस स्थान के लोगों का हृदय पाषाण का हैं वह इंसान बने रहने के योग्य नहीं हैं इसलिए सब पत्थर के बन जाएं।सिर्फ एक कुम्हारन थी जिसने शिष्यों की मदद की थी। उस पर दया करते हुए तपस्वी ने कहा कि तुम इस गांव से चली जाओ वरना तुम भी गांववालों के साथ पत्थर की बन जाओगी। लेकिन याद रखना गांव से जाते समय भूल से भी पीछे मुड़कर मत देखना।तपस्वी की आज्ञा का पालन करते हुए कुम्हारन गांव से चली जाती है लेकिन उसके मन में यह बात आने लगती है कि तपस्वी की कही बात सच भी है या नहीं और वह पीछे मुड़कर देख लेती हैं। इस तरह मुड़कर देखते ही वो महिला भी पत्थर की बन जाती है। सिहणी गावं में स्थापित कुम्हारन की पत्थर की मूर्ति आज भी उस घटना की याद दिलाती है।

खानवा का युद्ध भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण युद्धों में से एक था क्योंकि इसी के पश्चात ही भारत में हिन्दू राज्य की स्थापना का सपना हमेशा के लिए टूट गया था और मुग़ल साम्रज्य की भारत में नींव और भी मजबूत हो गयी थी। मुग़ल शासक हुमायूँ का इतिहास जानेखानवा का युद्ध महा शूरवीर राजपूत नरेश राणा सांगा और महा पराक्रमी मुग़ल बादशाह बाबर के मध्य 17 मार्च 1527 में लड़ा गया था जिसमे राजपूत नरेश राणा सांगा को पराजय का सामना करना पड़ा था |यह युद्ध स्थल आगरा से लगभग 40 किलोमीटर दूर खानवा नामक गांव में स्थित है | खानवा युद्ध के विजय के पश्चात दिल्ली- आगरा क्षेत्र में बाबर की स्थिति और भी ज्यादा मजबूत हो गयी थी |खानवा का युद्ध के कारण ( Reason Of Khanwa Ka Yudh):बाबर और राणा सांगा के मध्य खानवा का युद्ध क्यों हुआ इस के बहुत से अस्पष्ट कारण है जो निम्नवत है :-1.
बाबर ने राणा सांगा पर वादा तोड़ने का आरोप लगाया था | बाबर ने अपनी ‘पुस्तक तुजुक-ए-बाबरी’ में लिखा है कि राणा सांगा ने उसे (बाबर) भारत आने का निमंत्रण दिया था और साथ ही इब्राहिम लोदी के खिलाफ युद्ध लड़ने में उसकी सहायता देने का आश्वासन दिया था परन्तु बाद में राणा सांगा अपने इस वादे से मुकर गया | (परन्तु इस वार्तालाप के प्रति इतिहासकार मौन है क्योंकि बाबरनामा के अतिरिक्त वार्तालाप का उल्लेख और कहीं नहीं है | )2.
कुछ इतिहासकारों के अनुसार राणा सांगा ने बाबर पर उनके मध्य हुए समझौते को तोड़ने का आरोप लगाया | यह समझौता था की बाबर राजपूतों पर हमला नहीं करेगा |3.
राणा सांगा ने सम्पूर्ण भारत पर हिन्दू राज्य की स्थापना का सपना देख रहा था वहीं बाबर भी सम्पूर्ण भारत पर मुग़ल सम्राज्य का परचम लहराना चाहता था | एक छत के नीचे दोनों पराक्रमी योद्धाओं का सपना पूर्ण नहीं हो सकता था अत: बाबर और राणा सांगा के मध्य युद्ध दोनों के महत्वाकांक्षी योजनाओं का ही परिणाम था | राणा सांगा के सहयोगी (संयुक्त मोर्चा) :-मुग़ल शासक बाबर के दिल्ली अधिग्रहण और मुग़ल साम्राज्य की स्थापना के बाद समस्त भारत में खलबली मच गयी थी क्योंकि भारत के सभी राजपूत और अफ़गानों को यह विश्वास था की तैमूर लंग की तरह बाबर भी भारत को लूट कर वापस चला जाएगा परन्तु बाबर की महत्वकांक्षा भारत में राज्य करने की थी ना की वापस जाने की |जिसके तहत बाबर के विरुद्ध अधिकांश राजपूत और अफ़गानी, बाबर के खिलाफ एक भयानक सैन्य गठबंधन बनाने में सफल रहे | अफ़गान राणा सांगा का साथ इस आशा से दे रहे थे कि अगर राणा सांगा जीत जाता है तो उन्हें अपना दिल्ली का तख़्त एक बार फिर से मिल जाएगा |इस सैन्य गठबंधन में राणा सांगा का साथ इब्राहिम लोदी के छोटे भाई महमूद लोदी (जिन्हें अफ़गानों ने अपना नया सुलतान घोषित कर दिया था ), खानजादा हसन ख़ाँ मेवाती, अम्बर, ग्वालियर, चंदेरी, मारवाड़ दे रहे थे | लगभग सभी राजपूतों ने अपने दस्ते भेजे जिनमें सिरोहे ही, हरौती, जालोर, और अम्बर आदि शामिल थे ।बयाना का युद्ध:-खानवा के युद्ध के पहले 16 फरवरी 1527 को राणा सांगा ने बाबर की सेना को मुँह के बल गिराकर, मुग़ल के दुर्ग (चौकी) को अपने कब्जे में कर लिया था।राणा सांगा के इस युद्ध का शौर्य देखकर, बाबार के सैनकों में बहुत ज्यादा असंतोष फ़ैल गया और उनका मनोबल गिरने लगा। इसीलिए बाबर ने अपने सैनिकों के खून में जीत का जज्बा भरने के लिए राणा सांगा विरोधी जंग को जिहाद का नाम दे दिया और और घोषणा की कि वो इस्लाम धर्म की मान प्रतिष्ठा के लिए यह युद्ध लड़ रहे है। युद्ध के ठीक पहले बाबर ने शराब के घड़ों और बोतलों को यह दिखाने के लिए तोड़वा दिया की वह (बाबर) बहुत पक्का मुसलमान है और साथ ही शराब कभी न पीने की कसम खायी । बाबर ने मुसलमानों पर लगने वाले सीमा शुल्क ‘तमगा कर’ को भी समाप्त कर दिया।खानवा का युद्ध Khanwa Ka Yudh (अप्रैल 1527) :-इस युद्ध को भारत की भयावह लड़ाइयों में से एक माना जाता है। बाबर की पुस्तक बाबरनामा के अनुसार राणा सांगा की सेना 2 लाख से भी पार थी । जिसमे 10,000 अफगानी व इतने ही हसन खान मेवाती के फ़ौज सम्मिलित थी। (परन्तु इसमें भी असतिशयोक्ति संभव है)खानवा के युद्ध के समय ही राणा सांगा ने अपनी परम्परा ‘पाती पेरवन’ को पुनर्जीवित करके प्रत्येक सरदार को अपनी और से युद्ध में सम्मिलित होने का निमंत्रण भेजा।खानवा के युद्ध में भी बाबर ने पानीपत की तरह बाहरी प्रतिरक्षा के रूप में बहुत सी गाड़ियों को आपस में जंजीर से बँधवा कर रखवा दिया। घुडसवारों और बंदूकचियो को उसी तरह जमाया गया जैसे कि पानीपत के मैदान में जमवाया था।वीरता और शौर्य से लड़ते हुए अंत में राणा सांगा की सेना बाबर के तोपखाने और उसकी तुलुगुमा युद्ध निति के आगे कमजोर पड़ने लड़ी। बाबर ने राणा सांगा के दाएं बाजू पर भयानक हमला कर उसे लगभग काट ही दिया। राणा सांगा के सरदार ने घायल सांगा को इस युद्ध से बाहर निकला और नेतृत्व-विहीन, राणा सांगा की सेना बाबर की सेना द्वारा पूर्णता घेर ली गयी और उसे पराजय का मुँह देखना पड़ा।राणा सांगा बच निकले और वो एक बार फिर से बाबर से टकराना चाहता था परन्तु राणा सांगा के सरदारों ने उसे ज़हर दे दिया और इस तरह राजस्थान के शूरवीर योद्धा की मृत्यु हो गयी और भारत को हिन्दुत्व राज्य बनाने का सपना हमेशा के लिए सो गया। खानवा युद्ध ने बाबर की विजय के बाद दिल्ली – आगरा क्षेत्र में बाबर की स्थिति को और भी सुरक्षित बना दिया।बाबर ने अपने संस्मरण में लिखा है की :- ”कुछ हिंदुस्तानी तलवारबाज अवश्य ही हो पर अधिकांशत: तो सैन्य तरीकों, स्थितियों और रणनीतिओं से बिलकुल अनजान और अकुशल हैं। खानवा के युद्ध के परिणाम (Result Of Khanwa Ka Yudh)1.
अफ़गान की शक्ति भी भारत में लगभग अपंग हो गयी ।4.